" ब्रजभाषा पखवाड़ा "
हमारी हिंदी की अध्यापिका श्रीमती
नलनी ने ब्रजभाषा पखबाड़े की शुरुआत करते हुये बताया की ब्रजभाषा एक क्षेत्रीय
ग्रामीण भाषा है। अन्य भारतीय भाषाओं की तरह ये भी संस्कृत से जन्मी है। इस भाषा
में प्रचुर मात्रा में साहित्य उपलब्ध है। विभिन्न स्थानीय भाषाई समन्वय के साथ
समस्त भारत में विस्तृत रूप से प्रयुक्त होने वाली हिन्दी का पूर्व रूप यह ‘ब्रजभाषा‘ अपने
विशुद्ध रूप में आज भी आगरा, धौलपुर, करौली , मथुरा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती
है जिसे हम 'केंद्रीय
ब्रजभाषा' के नाम
से भी पुकार सकते हैं।
ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में हिन्दी-काव्य की रचना हुई। सभी
भक्त कवियों, रीतिकालीन
कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानन्द, बिहारी, इत्यादि।
वस्तुतः उस काल में हिन्दी का अर्थ ही ब्रजभाषा से लिया जाता था।भारतेन्दु की मुकरियों
में व्यंग्य रूप में सामान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया, सामान्य-जीवन
के बिम्ब पर आधारित प्रस्तुत मिलती है-
सीटी देकर पास बुलावै, रुपया ले तो निकट बिठावै ।
लै भागै मोहि खेलहि खेल, क्यों सखि साजन ना सखि रेल ॥
भीतर-भीतर सब रस चूसै, हंसि-हंसि तन मन धन सब मूसै ।
ज़ाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि साजन नहिं अंगरेज़ ॥
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